मैं स्त्री हूँ मैं नारी हूँ
मैं स्त्री हूँ मैं नारी हूँ
मैं कली हूँ मैं फुलवारी हूँ
मैं दर्शन हूँ मैं दर्पण हूँ
मैं नाद हूँ मैं गर्जन हूँ
मैं बेटी हूँ मैं माता हूँ
मैं बलिदानों की गाथा हूँ
मैं द्रौपदी हूँ मैं सीता हूँपुरूषों की इस दुनिया ने मुझे कैसी नियति दिखलाई
कभी जुऐ में हार गये कभी अग्नि परीक्षा दिलवाई
कलयुग हो या सतयुग इल्जाम मुझी पर आता है
क्यों घनी अंधेरी सड़कों पर चलने से मन घबराता हैमैं डरती हूँ मैं मरती हूँ.......अंधेरी सड़कों पर मुझे खून से तड़पता छोड़ दिया।सन्नाटे में सीख रही थी खून से लथपथ कायासबने तस्वीरें खीची लेकिन मदद को कोई नहीं आयाजब होश में आयी इस समाज की बातें सुनकर टूट गईपरिवार की बदनामी होगी सब यही मुझे समझाते हैंयह नयी उम्र के लडके थोड़ा बहक ही जाते हैं।तुम लड़की हो तुम भूल जाओदुनिया वाले तुम पर ही प्रश्न लगाऐंगे।क्यूं निकली रात में, क्या मेकअप, क्या कपड़े पहने थेप्रश्नो के भुलभुलईया में सच्चाई कहीं खो जाती हैं।भूल जाओ कहने वालों क्या तुम्हें लज्जा नहीं आतीहैं।कैसे भूलु उन रातों को, कैसे भूलु उन तकलीफो को,मुझसे छूते उन हाथों कोकैसे भूलु उन चिकन को कैसे भूलु......सब भूल जाओ, सब भूल जाओ कहने वालों।याद रखो आखरी गलती आपकी भी हो सकती हैकल सड़क पर बेसुध बहन या बेटी आपकी भी हो सकती है।और उससे बदतर कोई दर्द नहीं हो सकता
जो नारी का सम्मान नहीं करे, वो मर्द नहीं हो सकता..।
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